भले ही आज उत्तराखंड भारत के विकसित राज्यों में न गिना जाता हो लेकिन जब बात भारत सैन्य ताकत की आती है तो इस श्रेणी में सबसे ऊपर नाम उत्तराखंड का नाम आता है। जी हां दोस्तों जैसी लालसा और अटूट लगन उत्तराखंड के पहाड़ी नौजवानों में भारतीय सेना का हिस्सा बनने की होती है वैसी शायद ही किसी और में हो।
देश में कई वीर नौजवान ऐसे हैं जो अपनी जान की परवाह किये बिना अपनी नींद सुख चैन को त्याग के हमारी रक्षा के साथ साथ देश की सीमा की भी रक्षा भी कर रहें हैं। वहीं कई वीर सपूत ऐसे हैं जो अपने प्राणों की आहुति देकर हमारी यादों में जिंदा है। इनमें से एक हैं उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के लांस नायक गोपाल सिंह गुसाईं जिन्होंने 22 सितम्बर 1990 को 30 साल पहले चार घुसपैठियों को मौत के घाट उतार दिया और इसके बाद ये खुद भी शहीद हो गए। इनकी शहादत के बाद और इनके अदम्य साहस के लिए इनको मरणोपरांत सेना मेडल से नवाजा गया बीते 22 सितम्बर को इनके शहीद दिवस पर जिला सैनिक लीग ने गोपाल सिंह के घर जाकर इनको भावपूर्ण श्रधांजलि अर्पित की और इनके परिवार को सांत्वना दी।मछोड तल्ला सलट जिला अल्मोड़ा निवाशी गोपाल सिंह गुसाईं मात्र 18 वर्ष की उम्र में ही 20 कुमाऊं रेजिमेंट का हिस्सा बन गए थे।यह भी पड़े:गढ़वाल के दर्शन बिष्ट ने IPL में टीम सिलेक्ट कर जीते 1 करोड़ रुपए, लॉकडाउन में छूट गई थी नौकरी…
अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के चलते इनको जल्द ही लांस नायक के पद पर प्रमोट कर दिया गया। आज के लगभग तीस साल पहले यानी 1990 के दशक में कश्मीर घाटी में आतंकवाद अपने चरम पर था। और भारतीय सेना और आतंकवादियों के खिलाफ मुठभेड़ जारी थी। 20 कुमाऊं रेजिमेंट को कुपवाड़ा के मच्छल में तैनात दी गयी दी जिसमें लांस नायक गोपाल सिंह भी शामिल थे। 20 सितम्बर 1990 को भारतीय सेना को आतंकवादियों के सीमा में घुसने की खबर मिली तो इसकी जवाबी कारवाही में भारतीय सेना आतंकीयों का जोरदार सामना किया जिसके बाद आतंकी वापसी में भागने लगे लेकिन इसके साथ ही गोपाल सिंह आतंकियों के पीछे लग गए अपनी राइफल से 4 आतंकियों को ढेर कर दिया|यह भी पड़े: लद्दाख पर तैनाती हुई तो भारतीय सेना के खौफ से जाते हुए रोने लगे चीनी सैनिक, देखे वीडियो
बता दें वापस घर लौटते वक्त रेजिमेंट के हवलदार बची सिंह का पैर लैंडमाइन पर पड़ गया और वे गम्भीर रूप से घायल हो गए इसके बाद गोपाल सिंह हवलदार को कंधे में उठाकर लेकर आ ही रहे थे कि उनका पैर भी लैंडमाइन पर गिर पड़ा और वे भी गम्भीर रूप से घायल हो गए। और 22 सितम्बर 1990 को उनकी सहादत हो गयी।यह भी पड़े: Garhwal Rifles: देश सेवा की कसम खाकर भारतीय सेना में शामिल हुए 176 जवान
इसके बाद उनके शहीद दिवस पर उनको जिला सैनिक लीग श्रधांजलि देने पहुंची। बता दें कि शहीद गोपाल की पत्नी आनन्दी देवी अपने परिवार के साथ रामनगर में रहती हैं।वीर सपूत को एक बार कोटि कोटि प्रणाम और भावपूर्ण श्रधांजलि
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