वीर जशवंत सिंह रावत वह अकेला था और वो 300
गढ़वाल राइफल्स: दोस्तों गढ़वाल राइफल्स के पराक्रम से आज भारत का शायद ही कोई शख्स रूबरू न हो लेकिन वास्तव में कहा जाय तो गढ़वाल राइफल्स के जांबाजों ने अपने देश की रक्षा के लिए जान की बाजी लगाकर काम ही कुछ ऐसा किया है जिसे न तो भुलाया जा सकता है,औऱ न ही नज़रंदाज़ किया जा सकता है। गढ़वाल राइफल्स ने न केवल भारत में बल्कि अफ्रीका यूरोप और एशिया में भी अपनी वीरता का प्रमाण देते हुए,स्वयं को एक बाहदुर सेना दल साबित किया है
दोस्तों हर साल देवभूमि के हज़ारों की संख्या में पहाड़ी युवक गढ़वाल राइफल्स की भर्ती देते हैं लेकिन कुछ बेहतर क्षमता वाले युवक ही इस रेजिमेंट में भर्ती हो पाते हैं चलिए आज आपको रूबरू करवाते हैं गढ़वाल के एक ऐसे वीर की सौर्य की कहानी से जिसने न केवल युद्ध स्तर पर अपने पराक्रम का लोहा मानवाया बल्कि आज भी यह माना जाता है कि शाहिद होने के बाद भी यह भारत की सीमाओं की रक्षा करता है ।
वीर जशवंत सिंह रावत का जन्म: दोस्तों आपको लिए चलते हैं थोड़े इतिहास की ओर दरहशल बात है 19 अगस्त 1941 की तब भारत आज़ाद भी नहीं हुआ था । इसी दिन वीर वेरंगनाओ की भूमि यानी देवभूमि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के ब्लॉक वीरोंखाल ,पट्टी-खटली तथा गांव बाड्यूं में एक ऐसे जाबाज का जन्म हुआ जिसको शायद ईश्वर ने मातृभूमि की रक्षा के लिए ही भेजा था। जशवंत सिंह रावत का जन्म एक ग़रीब परिवार में हुआ लेकिन बचपन से ही लग्नसील ओर निरंतर मेहनत करने वाले जशवंत बाबा ने अपनी मेहनत के दम अपने लक्ष्य को मात्र 17 वर्ष की आयु में ही प्राप्त कर लिया आपकी जानकारी के लिए बता दें *कि सेना में जशवंत सिंह रावत मात्र 17 वर्ष की उम्र में भर्ती हो गए लेकिन पहले तो उनको सेना के लिए निर्धारित आयु न हो पाने के कारण रोक लिया गया परन्तु बाद में फिर उनको भर्ती कर लिया गया।
अरुणांचल मैं ड्यूटी:
जशवंत सिंह रावत को सेना में भर्ती हुए अभी कुछ ही समय हुआ था कि,तभी उस समय चीन की सेना भारत के अरुणांचल प्रदेश में नज़रें गढ़ाए हुए थी। और जल्द ही हमला करने की फिराक में थी।लेकिन इस दौर अरुणांचल की सीमा पर कोई भी सैन्य दल तैनात नहीं था इसका फायदा लेते हुए चीन के सैनिकों ने भारत की पीठ पर दोस्ती के नाम पर खंजर घोपते हुए हमला कर दिया,औऱ सीमावर्ती इलाक़ों में लोगों पर भयंकर अत्याचार किया वहाँ बुद्ध मंदिरों को तोड़ डाला ,वहां की स्त्रियों को प्रताड़ित किया,उनके साथ बहुत बुरे काम किये गए।
भारत की ओर से कार्यवाही:
लेकिन जब इस हमले की खबर भारत को मिली तो वहाँ चीनी सेना को खदेड़ने के लिये चौथी गढ़वाल राइफल्स को तैनात कराया गया।लेकिन चीनी सेना को खदेड़ना आसान हो जाता अगर हमारे पास पर्याप्त संसाधन होते ,न तो हमारे पास अच्छे हथियार थे ,ओर न ही गोला बारूद ऊपर से इस बात का भी कोई अंदाज़ा नहीं था कि दुश्मन की सेना का विस्तार कितना है । अच्छे हथियारों से लैस ऒर एक बहुत ही बड़ी तादाद में आयी चीनी सेना ने भारतीय सेना को बुरी तरह हरा दिया और पीछे धकेल दिया जिस कारण 4th गढ़वाल राइफल्स को वापस बुला लिया गया। उस सेना के तीन वीर सपूतों को वापस आना मंज़ूर नहीं था। वे तीन घर आने की बजाय वहीं ठहर गए और उन्होंने चीनी सेना से डटकर लड़ने का फैसला किया।
जिनमें शामिल थे लांस नायक
त्रिलोक सिंह नेगी
गोपाल सिंह गुसाईं
और जशवंत सिंह रावत केवल 22 साल के राइफल मैन जशवंत सिंह और त्रिलोक सिंह नेगी ने चीनी मशीन गन पोस्ट पर हमला करके वह पोस्ट छीन ली लेकिन इस घटना में त्रिलोक सिंह वीर गति को प्राप्त हो गए।इसके बाद अकेले बचे बाबा जशवंत सिंह रावत ने लगातार बिना कुछ खाये पिये दुश्मन की गोलियों का सामना करते हुए लगभग 300 चीनी सैनिकों को चैन की नींद सुला दिया।और साबित कर दिया कि किसी भी युद्ध को जीतने के लिए बल के साथ साथ चतुराई होना आवश्यक है| उन्होंने ऐसा mind सेट अप बनाया की दुश्मन को पता ही नहीं चला कि एक सैनिक है या पूरी बटालियन।
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जसवंत सिंह की सहादत:-
जब ये दोनों बहनें भी जशवंत सिंह का साथ छोड़ गई तब जसवंत सिंह को खाने पीने को लेकर दिक्कतें आने लगी परंतु इसके बाद भी वे लड़ते रहे।अंत में इन्होंने खुद को ही गोली मार दी बाद मैं जब चीनी सेना ने इनको देखा तो उसके पैरो तले जमीन खिसक गई। उन्होंने बोला अभी तक हम सिर्फ एक सिपाही ससे लड़ रहे थे!!इसके बाद चीन के सैनिक इनका सिर काटकर अपने साथ ले गए लेकिन युद्ध विराम के बाद चीनियों ने न केवल इनका सर लौटाया बल्कि इनकी बहादुरी के चलते इनको सिर भारत को लौटाने के साथ इनकी एक मूर्ति बनाकर भी भारत को प्रदान की।