पूर्वोत्तर भारत में बीते कुछ सालों में सुरक्षा की स्थिति सुधरी है और अब भारतीय सेना अपने करीब 10 हजार जवानों को यहां से हटाकर उनके प्रमुख उद्देश्य यानी पूर्वी सीमा पर चीन की ओर से बढ़ते खतरे से निपटने का काम सौंपेगी। ये जवान रिजर्व डिविजन का हिस्सा होंगे जिन्हें आसानी से कभी भी LAC पर सुरक्षा कर रहे फ्रंट लाइन सैनिकों का सहयोग करने भी भेजा जा सकता है और या फिर संवेदनशील इलाकों में किसी आकस्मिक स्थिति से भी निपटने भेजा जा सकता है।
और सूत्रों के माने तो अभी तक 3 हजार सैनिकों को पूर्वोत्तर के राज्यों की आंतरिक सुरक्षा और आतंकरोधी ड्यूटी से हटाया गया है, बाकी 7 हजार सैनिकों को इस साल के आखिर तक हटाया जाएगा।
और इस कदम से सेना को सीमाओं पर ध्यान केंद्रित करने और पारंपरिक अभियानों के लिए अपने जवानों को प्रशिक्षित करने में मदद मिलेगी। और कई संसदीय समितियां भी सुझाव दे चुकी हैं कि आतंकरोधी अभियानों में सैनिकों की संख्या घटाई जाए क्योंकि इसके परिणाम स्वरूप सेना अपने सबसे बड़े काम यानी देश को बाहरी आक्रमण से बचाने पर ध्यान नहीं केंद्रित कर पाती। आर्मी चीफ जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने भी 12 जनवरी को कहा था कि सेना पूर्वोत्तर भारत में अपनी संख्या कम करने की प्रक्रिया में है ताकि वह बाहरी खतरों से निपटने पर अपना ध्यान केंद्रित कर सके।
पूर्व नॉर्दन आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा जो कि रिटायर्ड उन्होंने बताया कि आतंकरोधी या चरमपंथी रोधी अभियानों से सैनिकों की संख्या घटाना एक अच्छा कदम होगा और उन्होंने ये भी कहा कि, पूर्वोत्तर राज्यों में सुरक्षा की स्थिति अब पूरी तरह से नियंत्रण में है और अब इसे केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल भी संभाल सकती है और इससे पूर्वी कमांडों को उनके मुख्य उद्देश्य पर ध्यान देने में मदद मिलेगी।
लाइन ऑफ कंट्रोल पर पाकिस्तान और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर चीन दोनों ही खतरा है और आंतरिक सुरक्षा में सेना के जवानों की संख्या को घटाने से सीमा पर प्रबंधन में मदद मिलेगी।