उत्तराखंड के इन गांवो में लड़के-लड़कियों को नहीं मिल रहे रिश्ते , शादी होना हो गया मुश्किल….

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Due to lack of roads in these villages of Nainital, marriage of boys and girls has become difficult
Due to lack of roads in these villages of Nainital, marriage of boys and girls has become difficult (Image Source: Social Media)

उत्तराखंड की सरोवर नगरी नैनीताल जहां सालभर पर्यटकों की भीड़ से गुलजार रहती है, वहीं इसके आसपास के कई गांव अब भी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। हैरानी की बात है कि पर्यटन में तेजी से उभरते इस क्षेत्र से कुछ ही दूरी पर बसे गांव आज भी सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी ज़रूरी सुविधाओं से वंचित हैं। हालत यह है कि यहां युवाओं के रिश्ते भी सिर्फ इस कारण नहीं हो पा रहे क्योंकि गांव तक पहुंचने के लिए कोई सुगम रास्ता नहीं है।

सौलिया और गैरीखेत: जहां रिश्ते भी सुविधा देख कर आते हैं!
नैनीताल से मात्र 10 किलोमीटर दूर बसे सौलिया गांव और गैरीखेत आज भी बुनियादी विकास की राह तक रहे हैं। सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसी ज़रूरी सुविधाओं का अभाव इतना गहरा है कि यहां तक कोई रिश्ता आने से भी कतराता है। न तो लोग यहां अपनी बेटियों की शादी करना चाहते हैं और न ही इस गांव से बहू लाने को तैयार होते हैं। युवाओं की शादियां सिर्फ इसलिए अटकी हैं क्योंकि गांव तक पहुंचने का कोई ठीक-ठाक रास्ता ही नहीं है। ग्रामीणों की मानें तो हर चुनाव में नेताओं की जुबान पर वादों की मिठास होती है, लेकिन जीतते ही वे गांव की सुध लेना भी भूल जाते हैं। सबसे दुखद बात यह है कि यहां की लड़कियां सुंदर, शिक्षित और संस्कारी होने के बावजूद सिर्फ सुविधाओं की कमी के कारण अब तक कुंवारी हैं।

राजनीतिक वादों का सच: हर बार अधूरे सपने
ग्रामसभा गैरीखेत की तस्वीर आज भी विकास से कोसों दूर है। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी यहां पक्की सड़क तक नहीं पहुंच पाई, जिससे ग्रामीणों को रोज़ 10 किलोमीटर का पहाड़ी सफर पैदल तय करना पड़ता है। बीमारी की हालत में अब भी मरीजों को डोली में उठाकर ले जाना पड़ता है। बुनियादी सुविधाओं की इस भारी कमी का असर सामाजिक जीवन पर भी साफ दिखता है—यहां के युवाओं के लिए रिश्ते मिलना मुश्किल हो गया है, और गांव से पलायन की रफ्तार भी लगातार बढ़ती जा रही है

धारी ब्लॉक की बबियाड़ ग्रामसभा के तोक बिरसिंग्या में विकास की अनदेखी ने अब ग्रामीणों का सब्र तोड़ दिया है। सामाजिक कार्यकर्ता रमेश टम्टा बताते हैं कि आज़ादी को 75 वर्ष हो गए, लेकिन गांव की तस्वीर अब भी वैसी ही है—बिना सड़क, बिना सुविधा। चुनाव आते ही नेता वादों की बरसात करते हैं, लेकिन जीतने के बाद गांव की सुध लेना भी ज़रूरी नहीं समझते। इस बार ग्रामीणों ने दो टूक कह दिया है—अब वादों पर नहीं, काम पर वोट मिलेगा। और अगर सड़क नहीं बनी, तो वोट भी नहीं डलेगा।

बिरसिंग्या में उबाल: चुनाव बहिष्कार की चेतावनी
स्थिति अब इतनी बिगड़ चुकी है कि गांव के अविवाहित लड़के-लड़कियों के लिए रिश्ते आना लगभग बंद हो गए हैं। नैनीताल जिले में ऐसे एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों गांव आज भी सड़क और जरूरी सुविधाओं के बिना जीवन काटने को मजबूर हैं। इन हालातों से हताश होकर अब ग्रामीणों ने पंचायत चुनाव में खुलकर विरोध का मन बना लिया है—उनका साफ कहना है, “अगर सड़क नहीं, तो वोट भी नहीं।

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