
पलायन आज पहाड़ों का एक ऐसा विषय है जिस पर बात करने से हर सरकार पीछे हटती है और इस विषय पर बात करना ही नहीं चाहती. जिस वजह से कई पहाड़ी राज्य इससे प्रभावित हो रहे हैं. इस पलायन की वजह से गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं.
मकान खंडन और जमीनें बंजर होती जा रही है. क्योंकि उस प्रदेश का युवा वर्ग अपने प्रदेश अपने पहाड़ों में कोई भी कमाई का अवसर ना पाकर. अपना घर चलाने के लिए अपना ही घर और पहाड़ छोड़ने के लिए विवश है और यह कहानी हर युवा हर पहाड़ की है.ऐसी ही एक कहानी एक युवा की है.जो उत्तराखंड राज्य के नैनीताल डिस्ट्रिक्ट के छोटी सी तहसील बेतालघाट के चड्यूला गांव की है.

उस युवा का नाम है पंकज टम्टा जो कि लॉकडाउन से पहले अपना घर चलाने के लिए रुद्रपुर में जॉब किया करते थे. लॉकडाउन और कोरोना महामारी के चलते कई युवाओं ने घर व पहाड़ों की तरफ रुख किया ताकि जब हालात ठीक हो जाए तो वह वही जाकर अपना काम दोबारा से शुरू कर सकें. उनमें से ही एक युवा थे पंकज टम्टा जिन्होंने इस सोच को बदलते हुए और पलायन पर एक जोरदार प्रहार करते हुए अपना खुद का काम शुरू करने की सोच रखी और एक सलून खोला.

जिसको उन्होंने “पहाड़ी सैलून” नाम दिया. जो कि सोशल मीडिया पर इस कदर छाया हुआ है कि क्षेत्रीय विधायक संजीव आर्य जिस से प्रभावित होकर वह खुद हौसला बढ़ाने के लिए बेतालघाट पहुंचे. पंकज टम्टा की कहानी एक प्रेरणा है.उन युवाओं के लिए जो अपना घर व पहाड़ छोड़कर पलायन कर कर शहरों की तरफ जा रहे हैं.पंकज टम्टा का पहाड़ी सलून आज उस गांव में ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड में अपना नाम बनाते जा रहा है और अन्य युवाओं को स्वरोजगार के प्रति प्रेरित कर रहा है.
