संघर्ष कर भी हार न मानना,और कड़ी मेहनत करने से सफलता अवश्य मिलती है। इस बात की मिसाल उत्तराखंड की बेटी रीना राठौर है, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से अपने परिवार का ही नही बल्कि पूरे उत्तराखंड का नाम रोशन किया है। रीना एक सामान्य किसान परिवार से है, लेकिन आज अपनी लगन और कड़ी मेहनत से वह पुलिस विभाग में डिप्टी एसपी है। जितनी बड़ी यह सफलता है, उतना ही उन्होंने इसके लिए संघर्ष किया है। आइए अब हम रीना और उसकी कड़ी मेहनत के बारे में बात करें। रीना टिहरी के मुनिकीरेती क्षेत्र की निवासी हैं।वह किसान परिवार से है, जिस कारण उन्हे बहुत अच्छी शिक्षा नहीं मिली। लेकिन रीना में कुछ कर दिखाने का जज़्बा था। उन्होंने अपनी पढ़ाई सरकारी स्कूल से पूरी की। हर कक्षा में उन्होंने टॉप किया। इसके बाद उन्होंने हायर एजुकेशन के लिए ऋषिकेश आने का फैसला किया और यहीं से अपनी ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन पूर्ण किया।
उन्होंने कॉलेज में बहुत मार्क्स स्कोर किए,जिससे उन्हे भुवनचंद्र खंडूड़ी द्वारा 55 हजार रुपये की स्कॉलरशिप भी दी गई। आईपीएस बनने की तैयारियों को लेकर वह दिल्ली आ गई। इसके कुछ समय बाद विकास अधिकारी के पद पर भी उनका चयन हुआ था, लेकिन उन्होंने उस पद को ज्वॉइन ना कर अपनी तैयारी जारी रखी। कुछ समय बाद उन्होंने उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी और पास होकर वह उप शिक्षा अधिकारी भी बन गई। लेकिन उनके मन में कानून व्यवस्था से जुड़ने की चाह थी। इस कारण उन्होंने कुछ सालों तक ही इस पद पर अपनी सेवाएं दी। यहां तक कि उनका चयन सीआरपीएफ में असिस्टेंड कमांडेंट के पद पर भी हुआ, लेकिन उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए वह जॉब भी त्याग दी। इतना संघर्ष करने के बाद अब जाकर उनका चयन उत्तराखंड पुलिस में बतौर डिप्टी एसपी के पद पर हुआ है।
गुरुवार को पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय नरेंद्रनगर में पासिंग आउट परेड हुई जिसमे रीना राठौर को तीरथ सिंह रावत द्वारा स्वार्ड ऑफ ऑनर देकर सम्मानित किया गया।पासिंग आउट परेड में उनका सर्वोत्तम प्रदर्शन रहा। रीना ने बताया कि उनका सपना डॉक्टर बन का था लेकिन इस क्षेत्र में उनके परिवार का खर्च ज्यादा था,इस वजह से उन्होंने आईएएस परीक्षा की तैयारी करने की ठानी।
पहाड़ी इलाकों में अंग्रेजी पाठ्यक्रम बहुत देरी से शुरू होता है इस वजह से कई होनहार बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते है।इस चीज की ओर ध्यान देते हुए द्वारीखाल के उप शिक्षा अधिकारी ने खुद के खर्चे पर वहां बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा देने की सोची। इस वजह से आज उनके क्षेत्र के 15 से अधिक बच्चों का चयन नवोदय विद्यालय में हुआ है। साथ ही रीना की कड़ी मेहनत, लगन और संघर्ष से यह पता चलता है, कि कुछ कर दिखाने का जुनून हो और उसके लिए कड़ी मेहनत की जाए तो आखिर में हमे सफलता अवश्य मिलती है।आज वह सभी लोगों खासकर पहाड़ की बेटियों के लिए प्रेरणा बन चुकी है।
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